भारत में आयुर्वेदिक चिकित्सा का आविष्कार कैसे, कहाँ और किसने किया

आयुर्वेद भारतीय उपमहादेश की एक प्राचीन चिकित्सा प्रणाली है। आयुर्वेदिक चिकित्सा 5 साल पुरानी चिकित्सा पद्धति है जो हमे स्वस्थ जीवन के लिए मार्ग दिखा रहा है। आयुर्वेद के रोगों के उपचार और स्वस्थ जीवन से लिए व्यक्तित्व करने का सर्वोत्तम तरीकों में से एक माना जाता है। आज हम जानेंगे आयुर्वेदिक चिकित्सा का आविष्कार कैसे और कहां हुआ ।

आयुर्वेद का महत्व क्या है ?

आयुर्वेद हमारी आधुनिक जीवन शैली को सही दिशा दिखाती है और स्वास्थ्य के लिए लाभकारी आदतें विकसित करने में सहायक होती है। इसमें कई प्रकार की जड़ी बूटियां के साथ ही एन प्राकृतिक चीजों से दवा और रोज मार्ग में जीवन में इस्तेमाल होने वाले पदार्थ तैयार किए जाते हैं। इसके इस्तेमाल करने से जीवन सुखी होने के साथ ही तनाव व अन्य रोग से मुक्त करता है। आज के समय में कई लोग आयुर्वेद चिकित्सा पर यकीन करते हैं यदि आपके चेहरे पर फुंसी दाग हो रहे है और आप इससे छुटकारा पाना चाहते हैं तो सबका भरोसेमंद एमएचपी फेस उबटन का उपयोग कर सकते हैं इसके इस्तेमाल करने के बाद से ही आपके चेहरे में काफी बदलाव होगा साथी आपका चेहरा पहले से कई ज्यादा गुना चमकेगा। कंपनी की वेबसाइट भी है, जहां आप ऐसे उत्पाद आसानी से पा सकते हैं। आयुर्वेद का महत्व इसलिए भी ऊंचा माना जाता है क्योंकि प्राचीन काल में बनाई गई कुछ दावों के साइड इफेक्ट भी हुआ करते थे लेकिन जो भी दवाइयां आयुर्वेद की मदद से बनाई जाती है उसमें किसी भी प्रकार का कोई भी नुकसान या साइड इफेक्ट नहीं होता है । इसीलिए लोग आयुर्वेदिक चीजों पर बहुत ही ज्यादा भरोसा भी करते हैं।

आयुर्वेद किस वेद से जुड़ा है ? (ayurveda originated from which veda)

आयुर्वेद की उत्पत्ति का मूलाधार अथर्ववेद को माना जाता है। क्योंकि अथर्ववेद में आयुर्वेद से जुड़ी सभी जानकारियां विस्तार से लिखी गई है। आयुर्वेद की उत्पत्ति भगवान ब्रह्मा के द्वारा मानी जाती है। वैसे तो आयुर्वेद की रचना करने वाले ब्राह्मण जी है लेकिन इसके बारे में लोगों को बताने वाले महर्षि कृष्ण व्यास द्वैपाजन जी हैं।

आयुर्वेदिक चिकित्सा का इतिहास (history of ayurveda in india)

आयुर्वेद को भारतीय आयुर्विज्ञान भी कहते है और आयुर्विज्ञान, विज्ञान की वह शाखा है, जिसमें मानव शरीर को होने वाले रोग और उन्हें रोग मुक्त करने की सारी विधियों का वर्णन मिलता है। आयुर्वेद एक प्राचीन चिकित्सा विज्ञान है जो लगभग पांच हज़ार वर्षों से भारत में प्रचलित है । आयुर्वेद की खोज भारत में ही हुई थी और भारतीय उपमहाद्वीप में व्यापक रूप से आयुर्वेद का अभ्यास किया जाता है ।origin of ayurveda आयुर्वेदिक चिकित्सा में दवाइयां जड़ी बूटियां व कई प्राकृतिक उत्पादों दे बनती है। उप्चार पद्धति बीमारियों पर काम करती है, त्वचा एवं बालों को स्वस्थ बनाती है और मानव शरीर एवं मस्तिष्क को फायदा पहुंचाती है। आयुर्वेद का अभिप्राय केवल जप, योग, उबटन लगाना या तेल की मालिश करना ही नहीं है, बल्कि आयुर्वेद का महत्व इससे भी व्यापक है। history of ayurveda in india आयुर्वेद में किसी भी तरह की स्वास्थ्य समस्या के मूल कारण का पता लगाकर उसे खत्म करने पर काम किया जाता है। यही कारण है कि भारत के अलावा आज दुनियाभर में आयुर्वेद को काफी ऊंचा स्थान दिया गया है। आयुर्वेद को 1976 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी आधिकारिक तौर पर मान्यता दी है। आयुर्वेद का व्यवस्थित स्वरूप प्रागैतिहासिक काल के ऋषि सम्मेलन से मिलता है, जो हिमालय पर्वत की तलहटी में आयोजित किया जाता था। भारतीय परंपरा और आयुर्वेदिक दर्शन के अनुसार, किसी भी बीमारी को ठीक करने से ज्यादा महत्वपूर्ण है उसे रोकना।

आयुर्वेदिक चिकित्सा के जनक कौन हैं? Father of ayurveda

आयुर्वेद या आयुर्वेदिक चिकित्सा का जनक चरक को माना जाता है। उन्होंने दवा पर एक मशहूर ग्रंथ लिखा जिसका शीर्षक उन्हीं के नाम पर यानी चरक संहिता दिया गया। इस ग्रंथ में कई प्रकार की बीमारियों के बारे में बताया गया है और उनके उपचार की व्याख्या भी की गई है। चरक का जन्म लगभग 300 ईसा पूर्व हुआ था चरक 150 और 200 ईस्वी और 100 ईसा पूर्व के बीच अस्तित्व में थे। उन्हें आयुर्वेद और पारंपरिक भारतीय चिकित्सा के मूल ग्रंथों में से एक, चरक संहिता के निर्माण के लिए जाना जाता है। जैसे कि हम जानते हैं कि आयुर्वेद का जन्म भारत में हुआ था जिसके कारण आयुर्वेद के जनक को पारंपरिक भारतीय चिकित्सा का जनक भी माना जाता है।चरक संहिता आयुर्वेद पर पहला संहिताबद्ध ग्रंथ है। एक अन्य संहिताबद्ध दस्तावेज़ सुश्रुत संहिता है। दावा किया गया कि धन्वंतरि सुश्रुत परंपरा के वंशज थे और उन्होंने इसे फैलाया, जबकि कहा जाता है कि आत्रेय चरक परंपरा के वंशज थे और उन्होंने इसका प्रसार किया।

रोग को खत्म करने के लिए कुछ आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां

  • गिलोय– प्राचीन काल से ही गिलोय रोग को खत्म करने में काफी महत्वपूर्ण रहा है और अब आज के समय में गिलोय दवा और जूस के रूप में भी उपलब्ध है। इस पानी में उबालकर पिया जा सकता है इसे दैनिक आहार में शामिल कर रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ सकती है।
  • आंवला– अवल में विटामिन सी की मात्रा काफी ज्यादा होती है जिसके कारण इसका इस्तेमाल करने से काफी बीमारियां खत्म हो जाती है इसे आप अचार या चटनी के रूप के साथ ही कच्चा भी खा सकते हैं। यह चयवनप्राश का प्रमुख घटक है। आंवला खाने से आपका चेहरा भी ग्लो करता है। आप अपने चेहरे के दाग धब्बे को हटाने के लिए एमएचपी का फेस उबटन भी इस्तेमाल कर सकते हैं इस उबटन को चंदन ,हल्दी ,मालतीफल, जैसे 18 प्राकृतिक सामग्रियों के मिश्रण से बनाया गया है अभी आज़माएं। यदि आप इसे खरीदना चाहते हैं तो एमएचपी की वेबसाइट से खरीद सकते हैं।
  • हल्दी– हल्दी आयुर्वेद में काफी महत्वपूर्ण व गुणकारी मानी जाती है इससे सूजन, कर्करोग, अल्जाइमर या ह्रदय रोग में मदद मिलती है। रोज खाने में डालने के अलावा हल्दी का पाउडर दूध में डालकर उसका सेवन किया जा सकता है। या फिर हल्दी की गोलियां भी खा सकते हैं।।
  • तुलसी– आमतौर पर तुलसी का उपयोग खांसी सर्दी जैसी बीमारियों को दूर करने के लिए उपयोग किया जाता है। तुलसी के पत्तों का सेवन कर सकते हैं या फिर इसे हर्बल टी के तौर पर भी पी सकते हैं।

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